बारिश का मौसम था और काली अँधेरी रात थी । आकाश में बिजली चमक रही थी और हवा की ठंडी लहरे भी आ रही थी । गिरीश चाचा अपने खेत में आराम से खाट के ऊपर सोए हुए थे ।
गिरीश चाचा का खेत उनके गांव में जो तालाब था उसके पास में ही था । बारिश की वजह से पूरा तालाब पानी से भरा हुआ था और खेत में जो घास थी वो भी बढ़ गयी थी । खेत में चाचा ने भैंसो को भी बाँध रखा था ।
उस खेत में आम के 10-15 बड़े बड़े पेड़ थे । इतने अँधेरे में वो आम के पेड़ की डालिया हवा की लहर से लहराती तब वहा का दृश्य बहुत ज्यादा डरावना लगता था ।
अचानक भैंसो ने चिल्लाना शरु कर दिया । गिरीश चाचा को पता नहीं चल रहा था की आखिर यह भैंसे क्यों इतना चिल्ला रही है । उन्हें ऐसा लगा की शायद ठंडी की वजह से यह भैंसे इतना चिल्ला रही है ।
चाचा ने खेत में चिमनी जलाई क्योकि उन्हें ऐसा लग रहा था की शायद यह भैंसे ठंड के कारन चिल्ला रही है । चाचा ने जैसे ही चिमनी जलाई की उस चिमनी के उजाले में उन्होंने देखा की उनके खाट पर कोई बैठा है । लेकिन चाचा को पता नहीं चला की वो कौन था ।
चाचा थोड़ा आगे अपनी खाट की ओर जाते है और देखने की कोशिश करते है की वो कौन है । थोड़ा आगे जाकर देखने से चाचा को इतना पता चलता है की वो कोई स्त्री है । लेकिन अभी भी गिरीश चाचा को वो नहीं पता चलता है की आखिर ये स्त्री है कौन ?
इतने अँधेरे में चाचा को डर लग रहा था । डर की वजह से उनका शरीर भी काफने लगा था । ऊपर से आकाश में बिजली भी हो रही थी और उस समय जो वातावरण था वो बहुत डरावना था ।
गिरीश चाचा वैसे तो बाहदुर थे लेकिन आज उन्हें भी डर लग रहा था । चाचा को ये बात भी मालूम थी की डरने से कुछ नहीं होगा उसलिए उन्होंने डरने की जगह पर इस परिस्थिति का सामना करने का तय किया
चाचा ने एक बड़ी लकड़ी अपने हाथ में ली और वो थोड़ा आगे खाट के पास गए । वो खाट के पास जाकर गुस्से में बोले कौन हो तुम ? तुम्हे क्या लगता है की में तुमसे डरता हु ?
सच तो ये था की गिरीश चाचा सच में बहुत डरते थे । चाचा का ये गुस्सा देखकर वो स्त्री खड़ी हुई और बोली क्या तुम सच में मुझसे नहीं डरते हो ? चाचा ने थोड़ी हिम्मत बताई और कहा की यहाँ से चली जाओ वर्ना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा ।
वो स्त्री बोली अब तू मुझे मेरे ही घर से निकालेगा ? यहाँ पर तो में कही वर्षो से रह रही हु , यहाँ तक की मेरा बचपन भी यही गुजरा है । यह मेरा ही घर है ।
ये सुनते ही चाचा का डर और गुस्सा दोनों ही शांत हो जाता है । गिरीश चाचा को अब लग रहा था की मेरे सामने जो औरत खड़ी है उन्हें में पहचानता हु । फिर भी चाचा सोच रहे थे की आखिर ये है कौन ? चाचा ये भी सोच रहे थे की अगर में इसको जानता हु तो ये इस वक्त इतने भयानक रूप में क्यों है ?
अचनाक चाचा को याद आ जाता है की ये तो जया है । जया मेरी बड़ी बहन । बचपन में में और जया साथ में ही खेलते थे और साथ ही साथ खेत का भी काम किया करते थे ।
अब गिरीश चाचा को पूरी बात समज में आ गयी । यह जया के बचपन की बात है । जब जया 15 साल की थी तब वो इसी खेत में एक दिन कुछ बच्चो के साथ खेल रही थी और वो खेलते खेलते एक डाली से दूसरी डाली पर छलांग लगा रही थी
जया जिस डाली पर बैठी थी वो डाली अचानक टूट गयी और जया मुंह के बल नीचे गिर गई । ये सब देखकर बच्चो ने चिल्लाना शुरू कर दिया । बच्चो के चिल्लाने की आवाज से गांव से बड़े लोग वहा पर पहुंच गए और जया जो उठाकर हस्पताल ले गए थे । किन्तु तबतक काफी देर हो चुकी थी और जया की मौत हो चुकी थी
गिरीश चाचा को ये सारी बाते याद आ गयी थी लेकिन जब उन्होंने खाट पर देखा तब वहा कोई नहीं था । उनको पता चल गया की ये पक्का जया की आत्मा ही है
दूसरे दिन उन्होंने ये सारी बाते गाववालो को बताई । गांव के एक बड़े बुजुर्ग ने कहा कि , जब जया की मौत हुई थी तब वो एक बच्ची थी और इसीलिए हमने उसे बालक समझ के दफ़नाया था । लेकिन वास्तव में हमें उसका अंतिम संस्कार करने की जरूरत थी ।
हमने उसका अंतिम संस्कार नहीं किया है इसलिए आज भी जया की आत्मा भटक रही है । हमें जया की आत्मा को मुक्ति देनी होगी । गांव के सभी लोगो ने कहा आपकी बात सही है हमें जया की आत्मा को मुक्ति देनी होगी ।
गिरीश चाचा ने तुरंत ही जया को जहा दफ़नाया गया था वहां से निकाला और चाचा ने जया के शब का अग्नि संस्कार किया और उसकी आत्मा को शांति दिलाई
ये कहानी केवल मनोरंजन के लिए है इसके पीछे हमारा उदेश्य किसी भी प्रकार की अंधश्रध्धा का प्रसार करने का नहीं है
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