यह उस दिन की सच्ची भूतिया कहानी है, जब हमारे स्कूल में गाँधी जयंती और लाल बहादुर शास्त्री जयंती की छुट्टी थी।
हम सब दोस्तों ने सोचा कि चलो यार इस दिन कहीं बाहर पिकनिक मनाने जाते है तो मेरे सभी दोस्तों ने भी हामी भर दी।
सब ने मिलकर गाँव से थोड़ी दुरी पर बने खंडहर के पास में पिकनिक मनाने का फैसला किया।
वह दिन काफी अच्छा और सुन्दर था। हम सभी ने खाना बनाने का सामान अपने साथ रख लिया, क्योंकि हम सभी खाना वहाँ जाकर बनाना चाहते थे।
हम कुल पाँच दोस्त थे और सभी के पास अपनी-अपनी साइकिल थी, तो हम सभी कुछ 30-40 मिनट में उस जगह पहुँच गये और उस खंडहर से थोड़ी दुरी पर एक बड़े पेड़ के नीचे हमने खाना बनाने का काम शुरू किया।
हमने देखा कि हम अपने साथ पानी लाना तो भूल ही गये थे तो सब बोले कि अब क्या करें, क्यूंकि हमारे पास तो केवल पीने का पानी था तो मेरा एक दोस्त बोला कि खंडहर के अंदर एक कुँवा है और उसमें पानी होगा।
मैं जाता हूँ और पानी लाता हूँ। इतना कहकर वो पानी लाने के लिये चला गया।
हम सब लोग मिलकर दाल-बाटी बनाने वाले थे जो कि हम ज्यादातर समय बनाते थे जब भी हम पिकनिक जाते थे।
मेरे दोस्त लोग सब्जियाँ काट रहे थे और मैं आटा गूँथ रहा था। तभी मेरा दोस्त चिल्लाने लगा।
वो बोला कि मुझे प्याज़ काटने से बहुत आँसू आ रहे है। हम सभी हँसने लगे।
वो बोला मैं अभी जाकर अपना मुँह धोकर आता हूँ और भोला भी अभी तक नहीं आया है। देखता हूँ क्या बात है?
भोला हमारा वो दोस्त था जो पानी लेने गया था।
कुछ मिनट बाद मेरा वो दोस्त जिसकी आँखों में प्याज काटने के कारन आँसू आ रहे थे वो जोर से चिल्लाया। उसकी आवाज किले के अन्दर से आ रही थी।
हम सभी बोले कि इसे क्या हो गया? और फिर मैं और मेरा एक दोस्त, हम दोनों मिलकर उसे देखने किले में गये। मेरा एक दोस्त उसी जगह पर रूककर हमारे सामान का ध्यान रख रहा था।
हम दोनों किले के दरवाजे वाली जगह पर पहुँचे। वो कुँवा उस किले के दरवाजे से थोड़ी दुरी पर ही था।
हमने देखा कि मेरा वो दोस्त जो चिल्ला रहा था वो वहाँ कुँवे के पास खड़ा था और भोला जो पहले पानी लेने गया था वो नीचे जमीन पर लेटा हुआ था।
मैंने अपने दोस्त से कहा कि इसे क्या हो गया है? तो वो बोला “यार जब मैं यहाँ आया था, तब भी ये यहीं पर लेटा हुआ था और मुझे इसे यहाँ ऐसे लेटा हुआ देख कर मेरी चीख निकल गयी।”
हमने पानी की एक छोटी बाल्टी से उस कुँवे से पानी खींचा और अपने दोस्त पर पानी के छींटे मारे और फिर, उसे होश आया।
वो बोला “अरे! तुम सब यहाँ कैसे पहुँचे?”
हमने कहा कि तू बहुत देर तक नहीं आया तो फिर हम तुझे देखने आये और फिर हमने तुझे यहाँ लेटा हुआ पाया। बता तेरे साथ क्या हुआ था?
वो बोला “यार! इस जगह से चलते है। यह जगह सही नहीं है।” जब मैं यहाँ इस कुँवे से पानी भर रहा था तो मैंने कुंवे में एक डरावनी औरत को देखा। वो औरत कुंवे के पानी में से मुझे देख रही थी और सबसे डरावनी बात तो यह थी कि उस औरत के दाँत काफी पैने थे जैसे कोई राक्षस के हो। और फिर, मैं इतना डर गया कि मैं इसी जगह बेहोश हो गया।
उसकी बात सुनकर हमें हंसी आने लगी और हमने कुँवे में झाँककर देखा। पर उस कुंवे में कोई नहीं था।
मैं उससे बोला कि “भोला सेठ, आज आपने नींद पूरी की थी या नहीं।”
… हम सब हँसने लगे।
हमने पानी भरा और हम सभी उस किले से निकलकर अपने दोस्त के पास पहुँचे जो आग जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठा कर रहा था।
वो बोला कि क्या हुआ था इसे और ये भोला के चेहरे के तोते क्यों उड़ रखे है?
हमने उसे सारी बात बताई और वो भी बोला कि यह तेरा वहम होगा।
उसने आग जलाई और सब्जी बनाने के लिए कढ़ाई को आग के ऊपर रखा और उसने हमसे बाल्टी वाला पानी माँगा तो जैसे ही मैं उस बाल्टी को उसकी और बढ़ाया तो मैंने उस पानी में एक औरत का चेहरा देखा जो मुझे देख कर हँस रही थी और उसके दाँत पैने और काफी डरवाने लग रहे थे। पर एक ही पल में, मैंने देखा कि उस पानी में कुछ नहीं था और जैसे ही वो बाल्टी मैंने अपने उस दोस्त को दी जो कढ़ाई आग पर रख रहा था, उसने एक झटके में कहा कि इस बाल्टी में तो पानी ही नहीं है।
यह सुनकर हम बाकी के चारों दोस्त उस बाल्टी में देखने लगे और सच में, उसमे पानी की एक बूँद तक नहीं थी।
हम सभी काफी चौक गये थे कि यह सब क्या हो रहा है?
फिर मैंने भोला से भी कहा कि यार! तूने जिस भूतिया औरत को देखा था उसे मैंने भी अभी देखा है इस बाल्टी के पानी में। पर अब ये बाल्टी का पानी कैसे ख़त्म हो गया? बड़ा ही अजीब था।
हम पांचों उठकर उस कुँवे के पास गये तो हमने देखा कि वो कुँवा तो सूखा हुआ था।
फिर, पहले जब हमने पानी भरा था वो कहाँ से आया?
भोला बोला कि यार हम लोगों को यहाँ से यहाँ निकल चाहिए। यह जगह ठीक नहीं है और हम सब अपना सामान लेकर वहाँ से निकल गये।
मुझे अभी भी समझ नहीं आता कि उस दिन हमारे साथ क्या हुआ था? मैं ख़ुश हूँ कि हमें कुछ नहीं हुआ। अच्छा हुआ हमने उस कुँवे का पानी नहीं पिया।
भोला कुछ दिन बीमार रहा और फिर वो भी ठीक हो गया और अब जब भी हम उस किले वाली घटना को याद करते है तो डर के मारे सहम जाते है।
तो दोस्तों, यह थी मेरी और मेरे दोस्तों के साथ पेश आई एक सच्ची Bhutiya Kahani. वह 2nd October का दिन हमें हमेशा ही याद रहेगा।
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