बिहार राज्य के एक बड़े से शहर बिहार शरीफ के रहने वाले सूरज अपने साथ घटी इस इस भयानक घटना को बताने जा रहे हैं
मेरी उम्र 25 वर्ष है और मेरी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी इसलिए मुझे उस दिन दिल्ली किसी काम से जाना था। तारीख थी 22 मार्च 2011, मैं जाने के 2 दिन पहले से ही सारा सामान पैक कर लिया था। 22 मार्च 11:00 बजे रात को मेरी ट्रेन थी। मुझे अकेले ही जाना था इसलिए मैं 22 मार्च को शाम में बिहार शरीफ से पटना के लिए बस से रवाना हो गया था। क्योंकि पटना स्टेशन से ही मेरी गाड़ी खुलने वाली थी।
और मैं स्टेशन पहुंचकर ट्रेन आने की इंतजार कर रहा था पटना तो मैं ट्रेन आने के 2 घंटे पहले ही पहुंच चुका था । 1 घंटे तो मैंने इधर–उधर घूमकर काट लिया, फिर मैं स्टेशन ही आ गया है घंटे के अंदर….
मेरे पास एक बड़ा सा बैग था जिसमें खाने–पीने की समान भी थी। जब गाड़ी आने में लेट थी तो मैं स्टेशन के बाहर पार्किंग की ओर घूमने के इरादे चला गया। भारी बैग मेरे पीठ पर एक बड़े बोझे के समान लग रही थी।
पार्किंग की तरफ मुझे घूमते हुए मेरी नजर दूर अंधेरे कोने में बैठी एक औरत पर पड़ी, उसके हाथ में मैंने एक कटोरा देखा मुझे लगा शायद यह भीख मांग रही हो, फिर मुझे लगा यह औरत अंधेरे कोने में क्यों भीख मांग रही है।
वह गंदे मेल कुचले वस्त्रों मे थी। उसकी हालत देख कर मुझे उस पर दया आ गई, और मैं उसे कुछ पैसे देने के इरादे से उसकी ओर चला गया। वह औरत सीमेंट के एक बने चबूतरे के उस तरफ थी मुझे चबूतरा के उस ओर घूम कर जाना पड़ता, जैसे ही मैं उस और पूछा देखा कि वह औरत वहां पर नहीं है। मैं एकदम से चौक गया, मुझे लगा इतनी जल्दी यह कहां चली गई, अभी तो यह एक अपाहिज की तरह यही पड़ी हुई थी। मैं यही सोच रहा था कि अचानक ट्रेन आने की आवाज मेरे कानों तक पहुंची और मैं दौड़कर वहां पहुंचा।
मैंने एसी बोगी में सीट रिजर्व करवाया था और मैं खिड़की की तरफ बैठा हुआ था।
ट्रेन में तो थोड़ी देर के लिए अफरातफरी थी हीं लेकिन थोड़ी ही देर में सब कुछ सामान्य हो गया।
ट्रेन तक भाग कर आने में मेरा गला सूखने लगा था इसलिए मेरे बैग में पड़ी पानी की बोतल को मैंने निकाला और पानी की कुछ घूंट पीली, और इसी बीच ट्रेन कुछ मिनटों में खुल गई।
मैं लेफ्ट साइड की खिड़की की तरफ था लेकिन मेरे बगल की सीट अभी भी खा ली थी ट्रेंकुल नेकेड 10 मिनट बाद तक वहां कोई भी नहीं आया बैठने….
कुछ देर बाद मैंने देखा कि टीटी अपने साथ एक औरत को लाया और उसे मेरी बगल वाली सीट पर बिठा दिया
मैं खिड़की की तरफ बैठा हुआ था और शीशे से बाहर गुजरती हुई पेड़ों को देख रहा था। अंदर एसी बोगी में काफी शांति का माहौल था। और अब रात के तकरीबन 12 से ज्यादा बज चुके थे इसलिए मुझे अब नींद भी आ रही थी। रह रह कर मेरी पलके मूंद रही थी। मैंने एक नजर अपने बगल बैठी उस औरत पर डाली, मैंने देखा जिस तरह उससे बिठाया गया था वह एकदम मूर्ति की तरह वहीं बैठी हुई थी और सामने एक साधी नजर से देख रही थी। उसकी यह हरकत देख कर मुझे थोड़ा अजीब लगा फिर मैं उस पर उतना ध्यान नहीं दिया और सोने की चेष्टा करने लगा।
आंख लगे बस कुछ ही क्षण हुए थे कि अचानक मुझे लगा मुझे कोई सपने में धक्का देकर उठा दिया हो, मैं चौक कर उठ गया और तुरंत घड़ी में समय देखा ,रात के 2:00 बज रहे थे। सपने के कारण मैं थोड़ा घबरा सा गया था इसलिए मैं बाथरूम की ओर चल पड़ा थोड़ा फ्रेश होने के लिए…..
रात की अब 2:30 बज रहे थे सभी लोग सोए हुए थे ट्रेन में, मैं बाथरूम से आकर अपनी सीट की ओर जाने लगा वहां पहुंच कर मैंने देखा वह औरत मेरी सीट पर बैठी हुई है। मैंने उस औरत से कहा देखिए यह मेरी सीट है आप अपनी सीट पर बैठ जाइए और मुझे वहां बैठने दीजिए।
पहले तो वह औरत सामने की ओर देख रही थी लेकिन जैसे ही मैंने यह बात कही वह औरत एक अजीब नजरों से मेरी ओर देखने लगी, मैंने उसकी आंखें देखी उसकी आंखों की पुतलियां एकदम फैली हुई थी नींद की एक झलक भी उसकी आंखों में नहीं थी बहुत ही डरावनी आंखें थी उसकी
मैं दो चार बार उसे वहां से हटने के लिए कहा लेकिन वह कुछ नहीं सुनी और वही बैठी रही, फिर मैंने उससे कुछ नहीं कहा और और उसके सीट पर बैठ गया, मुझे उस पर गुस्सा तो आ ही रहा था लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता था। अगर मैं उसे कुछ कहा था तो शोर शराबे में ट्रेन के बाकी सभी लोग जाग जाते,, इस कारण मैं उसे कुछ नहीं कहा।
कुछ ही देर बाद मुझे फिर से नींद आने लगी और मैं सो गया… मैं नींद में ही था कि अचानक मेरी नाको तक एक अजीब सी खुशबू आई और देखते ही देखते मेरी नींद खुल गई। मुझे लगा इतनी देर से तो कोई खुशबू नहीं आ रही थी पर अचानक से यह खुशबू कहां से आई। मैंने इधर उधर नजर घुमाया पर मुझे कहीं कोई नहीं दिखा, और थोड़ी देर के अंदर वह खुशबू बिल्कुल समाप्त हो गई।
मुझे थोड़ा अजीब सा लगा मैंने अपने बगल बैठे फिर उस औरत पर नजर डाली रात के 3:00 बज रहे थे अभी तक उस औरत की आंखों में नींद नहीं थी। उसका चेहरा एकदम अजीब 13 का लग रहा था एकदम लाल…. उसे देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
कुछ ही क्षण में मैंने देखा वह औरत अपने सीट से उठी और बाहर गेट की ओर चली गई….
डर तो मुझे लग रहा था लेकिन मैंने फिर भी आहिस्ता आहिस्ता उसके पीछे उसे देखने के लिए चला गया मैं जानना चाहता था आखिर यह क्या करती है।
मैं वही एक कोने से छिपकर उसे देख रहा था शुरू में तो मैंने देखा कि वह औरत एकदम मूर्ति की तरह खड़ी है गेट के पास और सामने की ओर देख रही है। बाहर से आ रही तेज हवाओं के कारण उसके बाल भी कर रहे थे जो उसके चेहरे को और डरावना बना रहा था।
कुछ ही क्षण बाद जब मैंने उस औरत की हरकत देखी तुम मेरे होश ही ना रहे, उसे देख कर मेरा पूरा शरीर थर्रा उठा ,,,,
मैंने देखा कि वह औरत गेट के एक कोने पर अपना पूरा चेहरा उस पर रगड़ रही है। मानो उसे कोई दर्द ही ना हो रहा हो, चेहरे से गिरे खून नीचे फर्श पर थे। मैं घबरा गया और पीछे की ओर हट गया,
अचानक उसकी नजर हम पर पड़ी, मैंने उसकी शक्ल देखी इतनी डरावनी शक्ल किसी आदमी की तो नहीं हो सकती थी चोट के कारण मांस चेहरे से लटक रही थी। आंखें उसकी फट कर बह रही थी मानो एक चुड़ैल हो सामने…
और देखते ही देखते वह औरत नीचे छलांग लगा दी, उस अंधेरी रात में वह औरत चलती ट्रेन से कूद चुकी थी पता नहीं वह कहां गिरी।
मैं बहुत ज्यादा डर गया था और किसी तरह डर के साए में रात काटी।
बाद में मैं दिल्ली अपने दोस्त के घर पहुंच कर यह सारी बातें उनके परिवार वालों को सुनाई। उन लोगों ने कहा, अगर तुम्हारी कही बात सच है तो तुम्हारा सामना एक बहुत ही खतरनाक चुड़ैल से हुआ था। यह भूत प्रेत ही होते हैं, यह आत्माएं इसी रूप में भटकती रहती है यह किसी का भी रूप ले सकती है। तुम तो किस्मत वाले हो कि बच गए। बहुत लोगों के साथ यह होता है कि भूत प्रेत उन्हें अपने साथ ही खींच लेते हैं।
इन लोगों की यह बात सुनकर मुझे पता चला , कि आज के जमाने मे भी यह चीज मौजूद हैं।
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