जयपुर से आई यह घटना भी अजीब है। शाम के 5:30 बजे का समय था। मैं, अपने कार्यालय से निकल कर घर की ओर चला। मार्ग में हरीश पान वाले की दुकान थी। एक पान खाना और एक बंधवा लेना मेरी दिनचर्या में शामिल था। उस रोज पान की दुकान पर तीन से चार लोग और खड़े थे।
हरीश के हाथ फुर्ती से पान लगा रहे थे। उन से निबटकर , पान वाला पान लगाने को उघत हुआ ही था कि एक साधु वहां आ गया। सावला सा बलिष्ठ बदन। ठीगना कद। लंबे और उलझे हुए केस। केसरिया वस्त्र। एक हाथ में कमंडल तथा दूसरे में चिमटा। हरीश ने झुक कर प्रणाम किया, तत्पश्चात तत्परतापूर्वक का एक पान लगाकर ,साधु की ओर बढ़ा दिया
साधु ने उस पान को अपने मुंह में रख लिया और वहां से चल दिया
मैं हंसा, वाह भाई। मेरा पान लगाना छोड़ कर, तुमने एक निठल्ले साधु को फटाफट पान बना कर दे दिया।
मेरी बात सुनकर, पानवाला शकपका गया। कुछ कदम दूर गए साधु ने संभवत मेरे वाक्य सुन लिए थे, अतः एक हुंकार भर कर उसने मुड़कर, मुझे देखा। मेरी तथा साधु की निगाह दो पल को मिली। दहकती अंगारे सी आंखें, मुझे भीतर तक भेद गई। मैंने दृष्टि फेर ली।
बगैर कुछ कहे साधु चला गया। हरीश ने पान लगाकर , मुझे थमाया तथा दूसरे पान को बांधता हुआ बोला, आपको इस बाबा के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए, यह बाबा बहुत चमत्कारी हैं। मैंने उस पान वाले से कहा, तुम लोग भी इस पाखंडी की बातों में आ जाते हो, मैं नहीं मानता इन लोगों को.. और और मैं यह कह कर अपने घर की ओर बढ़ने लगा
बात ही बात में पान दुकान पर हमें काफी देर हो गई थी। अब रात के 8:00 बज रहे थे। यहां से मेरा घर तकरीबन 2 किलोमीटर की दूरी पर था। और मुझे सुनसान रास्तों के बीच से होकर गुजर ना था। इसलिए मेरे पैर बहुत तेजी से बढ़ रहे थे। काली अंधेरी रात थी। झाड़ियों में से झींगुर की बोलने की आवाज एवं बिल्लियों की रोने की आवाज एक डर की एक अलग ही दास्तान सुना रही थी। मैं थोड़ी ही दूर पर पहुंचा था कि मुझे लगा कि मेरे पीछे किसी और के कदम बढ़ते हुए आ रहे हैं।
तेजी से बढ़ रहे हमारे पैर एकदम से ठिठक गए, मैंने पीछे मुड़ कर देखा मुझे कुछ नहीं दिखा शिवाय अंधेरे के। फिर मैं तेजी से आगे बढ़ने लगा, तो अचानक मुझे किसी की पदचाप सुनाई दी। तो मैं फिर एक बार पीछे मुड़ा, तो मैंने अंधेरे में पेड़ों के मोटी शाखाओं के पीछे किसी को छीपते हुए देखा।
एक पल के लिए मैं सकपका गया, मुझे लगा इतनी रात को मेरा पीछा कौन कर रहा है मैंने बड़े ध्यान से फिर उस पेड़ की और दिखने लगा, लेकिन मुझे फिर कहीं कुछ नहीं दिखा। और फिर मैं अपने घर की ओर बढ़ने लगा, पता नहीं आज क्या हो रहा था घर की ओर जाने वाले रास्ते मेरे लिए आज खत्म ही नहीं हो रहे थे।
आगे बढ़ते हुए मैंने अपने से थोड़ी ही दूरी पर अंधेरे में उसी साधु को देखा जो मुझे पान की दुकान पर मिला था वह अंधेरे में वहीं खड़ा था। मैंने सोचा शायद यही होगा जो मेरा पीछा कर रहा था चलो आज मैं इसकी खबर लेता हूं। और यह सोच कर मैं उसकी और बढ़ने लगा, जैसे ही मैं उसके करीब पहुंचा अचानक वह मेरी आंखों से कहां ओझल हो गया कुछ पता ही नहीं चला।
मुझे अच्छी तरह से याद है वह साधु ही था जो मेरी नजरों के एकदम सामने था। पहली बार मुझे इस तरह के डर का एहसास हुआ, मुझे पान वाले की कही बात ध्यान में आई, उसने कहा था यह साधु बहुत बड़ा चमत्कारी है। और मैंने तो इस साधु के बारे में कई अपशब्द भी बोले थे।
मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरा दिमाग दिग्भ्रमित हो रहा है। अचानक मेरे कलेजे में बहुत तेज दर्द होने लगी, ऐसा लग रहा था मानो पूरा प्राण निकल जाएगा। दर्द से छटपटा कर मैं वहीं गिर गया सड़क के किनारे… अब मुझ में उठने की भी सकती नहीं थी मैं वहीं पर दर्द से कराह रहा था कि अचानक वह साधु फिर मेरे सामने आया, उसे देखकर मैं एकदम अवाक रह गया।
उसका चेहरा बहुत ही डरावना था, मैंने उस साधु से माफी मांगी। पर वह साधु मुझसे एक शब्द भी नहीं कहा, और अपने कमंडल में से पानी की कुछ बूंदें हमारे ऊपर मारी। पानी की बूंदे हमारे शरीर पर गिरते हीं ऐसा महसूस हुआ कि मानो मेरे शरीर से पूरा खून निकाल लिया गया हो। मेरा खुद के शरीर पर से नियंत्रण एकदम खत्म हो गया था मेरे हाथ पैर कुछ भी काम नहीं कर रहे थे। औरदेखते ही देखते वह साधु फिर से गायब हो गया।
रात और गहरी होती जा रही थी मैं अकेला उस सड़क किनारे लेटा हुआ था एक जिंदा लाश की तरह….
अब मैं सिर्फ देख सकता था सुन सकता था लेकिन कुछ बोल नहीं सकता था मेरी आवाज छीन चुकी थी। मैं अपने आप में बहुत घुटन महसूस कर रहा था मुझे यही लग रहा था जितनी जल्दी सुबह हो जाए और मुझे कोई यहां से उठा कर ले जाए। मैं बता नहीं सकता था कि उस समय कैसा लग रहा था रात के अंधेरे में मुझे अजीब अजीब तरह की आवाजें सुनाई दे रही थी। मुझे ऐसा लग रहा था मेरे शरीर पर किसी और का नियंत्रण है।
धीरे–धीरे रात ढल गई। सुबह हुई तो रास्ते में गाड़ियों की चहल–पहल थी। उसी बीच हमारे एक चाचा वहीं से गुजर रहे थे। कि अचानक उनकी नजर हम पर पड़ी। उन्होंने पूछा आखिर क्या हुआ तुम्हें यहां एक ऐसे क्यों गिरे हुए हो, मैं बोलने की कोशिश कर रहा था लेकिन मेरे मुख से कोई भी आवाज नहीं निकल रही थी। उन्होंने कहा चलो कोई बात नहीं घर पर चल कर बात करेंगे, और वह यह कह कर मुझे गाड़ी में अंदर बिठाया।
मेरी हालत देखकर उन्हें बहुत अजीब लग रहा था। और थोड़ी ही देर में मैं अपने घर तक पहुंच गया। वहां मेरे परिवार वाले काफी परेशान थे। उन सब ने मुझे उठा कर एक बेड पर रखा और सभी पूछने लगे आखिर हुआ क्या था। मैं कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं था। उन्होंने कहा चलो कोई बात नहीं पहले इन्हें एक अच्छे डॉक्टर से दिखाते हैं। डॉक्टर को बुलाया गया डॉक्टर ने आकर मुझे कुछ इंजेक्शन भी लगाए और कुछ दवाई भी खाने को दी, और कहा इन्हें आराम करने दो दो–तीन दिन में यह खुद पर खुद ठीक हो जाएंगे।
दो–तीन दिन क्या हफ्ते निकल गए लेकिन मेरी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था मेरे घर वाले काफी तनाव में थे। पर अचानक ही एक बार रात को जब मेरी आंखें लगी, तो नींद में मुझे वह साधु दिखा, वह साधु मुझसे लगातार यही कहे जा रहा था की अपने इस हालत के जिम्मेदार तुम खुद हो, तुम्हें ने उस साधु से कहा ठीक है मैं जानता हूं मैंने बहुत बड़ी गलती की, और आज के बाद मैं ऐसा गलती कभी नहीं करूंगा।
यह कहते हैं अचानक मेरी नींद खुल गई मैंने पाया मेरे दोनों हाथ काम कर रहे थे पैर भी काम कर रहे थे पूरा शरीर स्वस्थ हो गया था। मेरी सुधरती हालत को देखकर मेरे परिवार वालों में खुशी की लहर दौड़ गई। जब मेरा पूरा शरीर स्वस्थ हो गया तब मैंने अपनी पूरी आपबीती अपने परिवार को सुनाई।
इस घटना के बाद मुझे भूत प्रेत एवं चमत्कारों पर विश्वास होने लगा।
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