जब मैं अपनी कॉलेज की छुट्टियों पर अपने गाँव में गया हुआ था। मेरे परिवार में कुल 6 लोग है। गाँव में, हमारे घर में, मैं अपने दादा-दादी के साथ ही सोता था। गाँव में रहने वाले लोग जल्दी ही जग जाते है और सुबह-सुबह ही काम करने के लिए अपने खेतों की तरफ चले जाते हैं।
मेरी दादी सुबह 5 बजे ही उठ जाया करती थी और वो मुझे भी उठा देती थी। इसलिए मेरी रोज़ सुबह जल्दी उठने की आदत बन गई थी। मैं सुबह उठकर रोजाना व्यायाम करता था। उसके बाद, मैं पढ़ाई करता था।
एक दिन की बात है, जब मैं बहुत थका हुआ था तो मैं जल्दी सो गया था। रात के लगभग 3 बजे मेरी आँख खुली। आज मैं काफी जल्दी उठ गया था तो मैंने सोचा कि अब जब उठ ही गये है तो क्यूँ ना पढ़ लिया जाये, पर पढ़ने से पहले कुछ व्यायाम कर ले ताकि सुस्ती भी उड़ जाएगी और पढ़ाई में मन भी ज्यादा लगेगा तो मैं अपनी छत पे चला गया और इधर-उधर टहलने लगा।
उस समय ठंड बहुत थी और कोहरा भी था। दूर-दूर तक घोर सन्नाटा था। छत पर टहलते हुवे मैंने देखा कि सामने वाले घर की छत पर एक आदमी या यूँ कहे कि एक साया खड़ा था। साया इसलिए क्योंकि कोहरे की वजह से वह साफ नहीं दिख रहा था। वह घर मेरे घर से कुछ 50 कदम की दूरी पर ही था।
मैंने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि गाँव में लोग जल्दी ही जग जाते है इसलिए शायद यह भी मेरी ही तरह जल्दी जग गया होगा और अपनी छत पर टहल रहा होगा। तो मैं भी व्यायाम करने लगा।
व्यायाम करते हुए, मैंने देखा कि वो आदमी या यूँ कहे कि वो साया जैसे पहले था वैसे ही अब भी बस मेरी ही तरफ मुँह किये खड़ा था। मुझे अब थोड़ा अजीब लगने लगा।
मैंने सोचा चलो उसे आवाज लगाई जाये
पर उधर से कोई आवाज आना तो दूर की बात वो आदमी तो अपनी जगह से हिला भी नहीं। मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया और मैंने उस पर ध्यान देना बंद कर दिया और मैं अपनी Exercise करने लगा।
तभी हवा में, अचानक से ठंड पहले से और ज्यादा बढ़ गयी थी। मैंने सोचा नीचे घर में जाया जाये तो जैसे ही मैं अपने घर में जाने लगा। मैंने देखा कि उस आदमी का कद अचानक से बढ़ने लगा है।
उस आदमी को उस समय आदमी समझना सबसे बड़ी मूर्खता थी। वो धीरे-धीरे एक घर जितना बड़ा हो गया था।
उस समय मेरे पैर जैसे जम ही गये थे। उस समय मैं खुद को कोसने लगा कि मैं ऊपर आया ही क्यों? अब मैं नही बचने वाला।
डर से मैंने अपनी आँखे बंद कर ली। थोड़ी देर बाद मैंने आँखे खोल के देखा पर वहाँ कोई भी नहीं था।
मैं तेजी से नीचे आया और कंबल ओढ़ कर सो गया। सुबह मैंने ये बात अपने घर वालों को बताई तो किसी ने भी मेरा विश्वास नहीं किया, सिवाय मेरी दादी के।
उन्होने कहा कि वो एक छलावा था और छलावा बहुत ही ख़तरनाक होते हैं। तेरी जान इसलिए बच गयी क्यूंकि तेरे गले में यह माता रानी का रक्षा कवच था। तब मुझे याद आया कि यह तो मैंने थोड़े दिन पहले ही अपने गले में बांधा था।
भगवान ने ही उस दिन मेरी जान बचाई।
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