खट खट खट | आवाज सुनकर माया की नींद खुल गई। कौन है ? उसने अंदर से पुकारा। उधर से कोई जवाब नहीं मिला।
दरवाजा खटखटाने की आवाज बढ़ती जा रही थी। काली अंधेरी रात थी। कुत्ते जोर जोर से भौंक रहे थे
इतनी रात्रि में कौन आ गया, बड़बड़ाती हुई माया दीपक जलाने के लिए माचिस ढूंढने लगी। जरूर किसी का बच्चा होने वाला होगा। अच्छा दाई का काम लिया, ना दिन में चैन ना रात में , कोई ना कोई आता ही रहता है। बच्चे भी कुघड़ी जन्म लेते हैं। लो यह भी कुछ समय है पैदा होने का
आज में दाई के काम से त्यागपत्र दे दूंगी। इधर बुढ़ापा और फिर 12 गांव का काम देखना, अब यह तो मुझसे नहीं होगा। हाथ में दीपक लेकर दरवाजे तक आई, दरवाजा खोला तो देखा हाथ में लालटेन लिए काले रंग का हट्टा कट्टा सा दिखने वाला युवक खड़ा था।
माया के पूछने से पहले ही बोला “बहन जी मेरी पत्नी प्रसव पीड़ा से छटपटा रही है आप हमारे साथ चलिए ” कहां से आए हो ? माया ने पूछा।
बहन जी मैं सामने वाले गांव से आया हूं, वह बोला। “यानी कि तुम बेरा से आए हो” हां बहनजी।
किंतु बेरा में तुम्हें कभी नहीं देखा ? वहां लगभग सभी को जानती हूं, 40 वर्ष से बेरा का काम देख रही हूं।
बहन जी मैं बाहर नौकरी करता हूं बस मेरा एक या दो बार ही गांव का चक्कर लगता है इसलिए आप मुझे नहीं जानती हैं।
माफ कीजिए। इस समय मैं आपके साथ नहीं चल सकती। अंधेरी रात है और बुढ़ापे के कारण आंखों से भी कम दिखाई देने लगा है। ” माया बोली ”
“बहन जी उसकी तबीयत ज्यादा खराब है” कह कर पैरों में गिर पड़ा।
माया तुनकमिजाजी के साथ साथ दयालु भी थी। अब उसे मजबूरन उस आदमी के साथ चलना पड़ा। वह लालटेन दिखाते हुए बराबर में चल रहा था।
आधा किलोमीटर चलने के बाद एक नाला पड़ा। नाले की ओर संकेत करते हुए मुड़ने को कहा।
माया बोली उधर कहां जा रहे हो ! बेरा का रास्ता तो सीधा है।
नहीं”
आपको रात्रि में भ्र्म हो रहा है। मेरे पीछे पीछे आओ। कह कर आगे बढ़ने लगा माया उसका अनुसरण करती हुई चलने लगी।
50 कदम की दूरी तय करने के बाद नाले में उतर गया। माया ठिठकर रुक गई। वहां क्यों खड़ी हो गई ? मेरे साथ आओ “वह बोला”
माया ने कहा , तुम मुझे कहां ले जा रहे हो ? यह रास्ता तो मैंने कभी नहीं देखा ?
बहन जी मैं आपको ठीक ही ले जा रहा हूं, यहां से हमारा गांव बस थोड़ी ही दूर है। कह कर माया का हाथ पकड़ कर नाले में उतार दिया। माया मजबूर थी ,वापस भी नहीं जा सकती थी। उसके साथ साथ चलने लगी।
नाले में से सुरंग में प्रवेश किया। सुरंग देख कर माया को शक होने लगा। वह भगवान का स्मरण करते हुए चल रही थी।
चलते चलते उसके पैर कांप रहे थे,शरीर पसीने से तरबतर हो रहा था। उस युवक ने माया की स्थिति भांप ली।
वह बोला “आप घबराइए मत आपको कुछ नहीं होगा” वापसी में सब सकुशल आपको घर तक छोड़ कर आऊंगा।
सुरंग से निकलते ही सड़क दिखाई दे रही थी। वहां से थोड़ी दूरी पर नगर बसा था। सड़क नगर में जाकर मिलती थी।
वहां चारों तरफ प्रकाश फैला हुआ था। माया को बड़ा आश्चर्य हुआ की सुरंग से बाहर अंधेरा है, और यहां नगर प्रकाश से दमक रहा है। वह भयभीत सी उस युवक के पीछे पीछे चलने लगी।
उन्होंने नगर में प्रवेश किया, नगर में जो प्रकाश था वह ना चांद-सूरज का था और ना ही दीपक का। वह स्वाभाविक रूप से विद्यमान था।
वहां सारे मकान बड़े सुंदर और आलीशान बने हुए थे। नगर में संगमरमर की प्रधानता थी। युवक एक मकान के सामने जाकर रुक गया। माया समझ गई कि वह उसी का मकान है।
फिर दोनों ने अंदर प्रवेश किया। लंबाई चौड़ाई के अलावा कमरे ऊंचे थे। माया को उस कमरे में ले गया जहां पलंग पर पड़ी एक महिला दर्द से छटपटा रही थी।
औरत के दानवाकार शरीर को देख कर माया को एकदम धक्का सा लगा। वह गिरने ही वाली थी कि उस युवक ने संभाल लिया। फिर वह बोला आप इधर-उधर की बातों पर गौर मत करो , यह सब प्रकृति का देन है जिस काम के लिए आई हो सिर्फ उसी में ध्यान लगाओ।
माया फॉरेन उपचार में जुट गई। उसका शरीर सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था। उपचार करते समय हाथ भी मुश्किल से काम कर रहे थे। वह हिम्मत जुटाकर भगवान का स्मरण करती हुई कार्य कर रही थी।
कुछ समय बाद लड़का पैदा हुआ। पैदा होते ही वह जमीन पर बैठ गया और धीरे धीरे उसका आकार बढ़ने लगा। शीघ्र ही वह मां-बाप के आकार का हो गया।
फिर वह भयंकर हंसी हंसता हुआ कमरे में चहलकदमी करने लगा।
अब माया से ना रहा गया उसकी चीख निकल गई। वह युवक माया के नजदीक आकर हाथ जोड़कर बोला, हमारी मदद की है इसके लिए हम आपके आभारी हैं, हमसे कोई भूल हो गई हो तो माफ कर देना। सामने अलमारी में टोकरी रखी है जितना धन चाहो इसमें से ले लो।
मुझे धन नहीं चाहिए बस जाने की इजाजत दीजिए “माया बोली” .
ऐसा कैसे हो सकता है, कह कर अलमारी से टोकरी उठा लाया। माया के मना करने पर भी टोकरी में से धन निकाल कर उसके पल्लू में डाल दिया।
फिर वह माया को छोड़ने चल दिया। पीछे पीछे चल रही माया ने अपने पल्लू में रखे हुए धन को गौर से देखा तो क्रोध से जल भून गई। शक तो तभी से हो रहा था जब वह पल्लू में डाल रहा था, लेकिन यह तो सचमुच ही कोयले हैं गुस्से में भरकर मन ही मन उसे गालियां देने लगी।
सुरंग से बाहर निकलते हैं घोर अंधकार दिखाई दिया। माया उससे बोली अब तुम जाओ, मैं अकेली चली जाऊंगी।
मैं आपको आपके घर तक छोड़ आऊंगा “उसने जवाब दिया” .
तुम्हें मेरे साथ आने की कोई जरूरत नहीं कह कर चलने लगी। उस युवक को वहीं से वापस लौटना पड़ा। माया का बदन क्रोध से कांप रहा था कोयले दे कर सम्मान को चोट पहुंचाई।
अच्छा था कि कुछ नहीं देता, आत्मा को कष्ट तो नहीं पहुंचता, मेरे साथ विश्वासघात हुआ है। एक तो रात में ना जाने किस लोक में ले गया डराते डराते खून का पानी कर दिया, उसका भी यह बदला दिया। आज से मैं दाई का काम छोड़ दूंगी बुदबुदाते हुए रास्ते में कोयले को फेंकना शुरू कर दिया।
फिर वह अपने गांव पहुंची, घर का दरवाजा खोल कर सीधे चारपाई पर जाकर लेट गई, थकान के कारण उसे शीघ्र ही नींद आ गई।
सुबह जागने पर उसे रात की बात याद आ गई। उसने चारपाई के नीचे रखा कोयला उठाया जिसे वह लोगों को दिखाने के लिए बचा कर लाई थी। कोयले को देखकर उसके होश उड़ गए। वह कोयला नहीं सोने का टुकड़ा था।
बिस्तर छोड़कर दौड़ी-दौड़ी वह नाले तक पहुंची। वहां उसे कुछ नहीं मिला। रास्ता आसपास के खेत सब कुछ छान डाला, उसके द्वारा फेंके के सोने के टुकड़े अब वहां नहीं थे।
माया की हालत पागलों जैसी हो गयी। वह रोती चिल्लाती अपने घर पहुंची। माया की हालत देखकर महल्ले के लोग इकट्ठे हो गए। वह बार-बार रोते हुए कह रही थी, “हाय मैं लुट गई मैं बर्बाद हो गई”
लोगों ने जब पूछताछ की तब उसने यह कहानी इन्हें सुनाई। इसके बाद ममाया की तबीयत बिगड़ती गई, डॉक्टर को बुलाया गया किंतु कोई फायदा नहीं हुआ। दाई का काम करने वाली वह नि:संतान विधवा उसे शाम को चल बसी।
” यह घटना उत्तरप्रदेश के वेरा गांव की है।
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