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Shaapit Haveli || Horror Stories In Hindi || 2021 ||


 


आज भी जामनगर की व भुतहा कोठी मेरे अवचेतन में स्याह स्वप्न की तरह इतनी मजबूती के साथ पैठि हुई है कि समय की धूल आज भी उसकी स्मृति की चमक को धुंधला नहीं कर सकी है।  और उसकी याद के साथ हैं एक सच्ची और दिल दहला देने वाली कहानी दबे पांव आहिस्ता आहिस्ता एक रील की तरह खुलती चली जाती है और मैं पूरी हतप्रभअता के साथ उस कहानी की घटनाओं और दुर्घटनाओं से जुड़ता चला जाता हूं।


बचपन की तुतलाती यादों की खिड़की से कहानी झांक गई है, जब मेरे 8 वर्षीय भतीजे ने अनायास ही यह पूछ लिया अंकल ” क्या भूत सच में होते हैं ? ” ठीक यही प्रश्न मैंने अपने बचपन में अपनी मां से पूछा था।

हुआ यूं था कि जंगलों को काट कर वहां कॉलोनी बनाई गई थी जिसमें हमारा परिवार रहने वाला था। प्रायः सभी क्वार्टर खाली पड़े हुए थे , कुछ ही लोग आकर रहने की हिम्मत जुटा पाए थे कारण एक तो शहर से दूर बियाबान में यह कॉलोनी बनाई गई थी।


इसलिए जहां शहर से दूरी एक कारण था लोगों के यहां बसने में हिचकिचाहट का, वही चोरी चकारी का भी डर था जो लोगों को सहमाता था।

गर्म लू के थपेड़े जंगल से आकर जब कॉलोनी रूपी इस सीमेंट के जंगल से टकराते तो हवा के सायं सायं आवाज़ गूंज मरने लगती। गर्मी भी इतनी पड़ती की चील भी अंडे छोड़ने लगती। दूर सड़क पे देखने में ऐसा लगता मनो कोई तालाब हो ,जिसमे से भाप उठ रही हो।
मगर इस गर्मी में भी हम कहां चैन से बैठने वाले थे अपने दोस्त रवि के साथ जंगल की ओर जाते बेर तोड़ने के लिए। एक दिन जब हम दोनों बेर तोड़ रहे थे,तभी घुमावदार चक्कर खाती हवा का एक झोंका हमने अपनी और आते देखा, चक्रवात अजीब सा लगा। मेरे दोस्त ने कहा कि ” यह भूत है इसमें मत फसना ” और यह कहकर उसने अपनी जेब नमक का एक पुड़िआ निकाला और उसे हवा में फेंका।


इत्तेफाक से वह अंधड़ वहीं रुक गया तो मेरे दोस्त ने मुस्कान से कहा देखा अगर यह नमक का पुड़िआ न होता तो हम दोनों फस गए थे भूत के चक्कर में।
“मैं भूत प्रेतों को बिल्कुल नहीं मानता मुझे डराने की कोशिश भी मत करो” मैंने भड़कते हुए कहा और चुपचाप घर की ओर दोनों चल पड़े।

और जब मैंने अपनी शंका के समाधान के लिए अनायास ही अपनी माँ से पूछा था कि , क्या सचमुच में भूत प्रेत होते हैं या यह सिर्फ मन का बहम है। तो मेरी मां ने कहा था इसका जवाब बेटा मैं आज नहीं कल दूंगी और यह कह कर उन्होंने मेरी जिज्ञासा को रहस्य की रस्सी से बांध दिया।
पूरे रात मुझे बेचैनी के कारण नींद नहीं आई और मैं करवटें बदलते हुए सुबह का इंतजार करता रहा। सोचता रहा कि कब सुबह हो और कब मैं मां से इस प्रश्न का उत्तर पा सकूं की भूत होता है या नहीं , उधेड़बुन में कब सुबह हो गई पता भी नहीं चला


रसोई से आती माँ की आवाज़ ने चलो हाथ मुँह धो लो , नास्ता तैयार हो गया है। नास्ते के बाद जब मैं बाहर बैठक में आया , तो दरवाज़े पे हमारा नौकर रामदास को तांगा लाते हुए बोला चलिए तांगे में चल कर बैठिए। तो मैंने पूछा की हम कहाँ जा रहे हैं रह? तो उसने बोला की जज साहब की कोठी। तभी मेरे माँ और पिता जी भी आ गए


मैंने अपनी माँ से पूछ की हम जज साहब की कोठी क्यो जा रहे हैं , तो उन्होंने गंभीरता से कहा भूत से मिलने। तांगा एक विशालकाय कोठी के सामने आकर रुक गया, एक बहुत बड़े आहाते के बीचोंबीच विरान कोठी खड़ी थी


देखने से ही लगता था कि सालों से इस की रंगाई पुताई कुछ भी नहीं हुई है, और वर्षों से यही पड़ी है इसमें कोई रहने भी नहीं आया है। अहाते में बबूल के पेड़ बड़े हो गए थे। मैंने मां से पूछा मां यह , किस की कोठी है ? जज साहब की ? तो मां ने कहा हां बेटा यह जज साहब की कोठी है, क्योंकि उनसे पहले और उनके बाद आज तक कोई भी इस कोठी में नहीं रख सका है और सच बात तो यह है कि वह भी कोठी में नहीं रह पाए।

यह यह जज साहब कौन थे माँ ? माँ ने कहा , जज साहब अपने ही रिश्तेदारों में से एक थे बेटा बहुत ही मिलनसार सामाजिक व्यवहार कुशल एवं बहुत ही विलक्षण विद्वान वव्यक्ति थे।उन्होंने विलायत से कानून की पढ़ाई की थी।


जब इस शहर में जज होकर आए तो उनकी प्रतिष्ठा के अनुरूप कोई कोठी खाली नहीं थी उन्हें सर्किट हाउस में कुछ दिन ठहरना पड़ा। एक दिन क्लब में किसी दोस्त ने मजाक में कह दिया कब तक सर्किट हाउस में रहने का इरादा है , उन्होंने कहा जब तक ढंग की कोठी नहीं मिल जाती। दोस्त ने कहा , कोठी नंबर 13 खाली खाली ही रहती है और बहुत सुंदर एवं बड़ी है।

तो साहब ने पूछा तो कोठी खाली क्यों है ? दोस्त ने कहा “ भूत रहते हैं ”.  तभी जज साहब कहते हैं कि मैं भूत प्रेतों में कतई यकीन नहीं करता। यह सब बकवास है। मैं अब कोठी में ही रहूंगा अपने पूरे परिवार के साथ, देखें कैसा होता है भूत।


जज साहब ने आवेश में अपना फैसला सारे दोस्तों को सुना डाला , सब भोचक्के से एक दूसरे को देखने लगे, कुछ मित्रों ने समझाने की कोशिश भी की मगर जज साहब अपने फैसले से टस से मस नहीं हुए और शनिवार तक अपना सामान लेकर वहां सब परिवार रहने पहुंच गए


इतना कहकर मां थोड़ी देर के लिए चुप हो गई मुझे लगा जिज्ञासा के घोड़े पर सवार कौतूहल अचानक घोड़े के रुक जाने से जैसे चौक पड़ा हो, फिर क्या हुआ मां मैंने उग्रता से पूछा।


फिर बाबूजी ने कहा नहीं चलोगे क्या ? कोठी भी तो देख लो सारी कहानी बाहर दरवाजे पर खड़े खड़े ही सुननी है क्या ? हम लोग लॉन पार करते हुए कोठी के बरांडे तक आ गए थे।

एक कोने में सोती हुई काली बिल्ली हम लोगों के पैरों की आवाज सुनकर उछलकर बबूल की झाड़ियों में जाकर खो गई।  भीतर कमरे में उल्टी लटकी चमगादड़ भी पंख फड़फड़ा कर हम लोगों के आगमन के प्रति अपनी गुस्सा जाहिर कर दी। पंखो की फड़फड़ाहट से कुछ मकड़ी के जाल टूट कर हवा में लटक पड़े और कुछ जालों के रेसे तो हवा में लहरा कर मेरी कमीज के कॉलर में भी चिपक गए।

यही है वह कोठी जो कभी साफ सफेदी चमक से हर आने जाने वाले नजऱ को आर्कषित कर लिया करती थी। मखमली घास का कालीन बिछा हुआ था , लॉन में जहां एक रंगीन छतरी भी लगवा दी थी जिस की छांव में 4 कुर्सियों और एक टेबल लगी हुई थी, आने जाने वाले लोगों के साथ वहां चाय पिया करते थे सब ।

यूँ ही मैंने बात को आगे बढ़ाने के लिए पूछा था,सब यानी ? बाबूजी ने कहा जज साहब उनकी पत्नी उनकी तीन बेटियां और मैं।

यहीं से शुरू होती है असली कहानी उस दिन सभी चुप चुप और खामोश खामोश से बैठे थे। इतनी खामोशी जज साहब के परिवार में मैंने कभी नहीं देखी थी, सहमा देने वाली खामोशी ,चाय सुड़कने की आवाज भी सुनाई दे। इतनी ज्यादा खामोशी को देखकर बाबूजी बोले मैं हकीकत में हूं या सपना देख रहा हूं ?

सपने के कारण यह खामोशी है, जज साहब अपनी आदत के अनुसार जोर से हंसे , बोले और हम सब को देखा फिर गंभीर हो गए।


बाबूजी ने पूछा ऐसा क्या देख लिया अपने सपने में जरा हम भी तो सुने। चाय की चुस्की लेते हुए साहब बोले हुआ क्या है कि हम सभी लोगों ने एक ही सपना देखा है , एक ही आदमी और उसकी उसकी एक ही चेतावनी।

सभी लोग उसी को सोचकर हैरान हैं की सभी को एक जैसा सपना कैसे दिख रहा है। हमने भी सुनाएँ वह हैरतअंगेज सपना । जज साहब ने प्याली टेबल पर रखी और सपना सुनाने लगे , बोले एक सफेद वस्त्रों में सफेद दाढ़ी वाला एक बूढ़ा व्यक्ति है जो हमसे कह रहा है कि यह स्थान हमारा है इसे जितनी जल्दी खाली कर दोगे उतने ही फायदे में रहोगे , खबरदार जितनी लत लाली करोगे उतना ही नुकसान भुगतोगे।  इतना कह कर वह अलौकिक आकृति गायब हो गई और एक एक तूफान सा आया और मेरी आंख खुल गई।

समय का जरूर थोड़ा बहुत अंतर रहा होगा क्योंकि सपना देखते समय कोई भी घड़ी नहीं देख सकता हंसते हुए जज साहब ने कहा। मगर परिवार के हर सदस्य को सपना यही दिखा है। यही तो अजीब संयोग है फिर भी आपने क्या सोचा है ? अब बाबूजी ने पूछा अरे करना वरना क्या है शेखचिल्ली थोड़े ही हूं मैं जो सपने में किसी ने धमकाया और बोरिया बिस्तर बांध कर चल पड़े।

फिर मैंने उत्सुकतावस पूछ लिया की क्या जज साहब ने कोठी खाली कर दी थी ? तो बाबूजी ने कहा जज साहब बड़े जिद्दी स्वभाव के थे , वे भूत प्रेत में विश्वास नहीं रखते थे।

इसलिए उन्होंने मकान नहीं छोड़ा। तीसरे दिन फिर वही स्वप्न परिवार के सभी सदस्यों को आया। अबकी बार एक और चेतावनी जुड़ गई थी अब कल से देखना हम क्या करते हैं।

इत्तेफाक से चौथे ही दिन बाबूजी फिर जज साहब के यहां गए थे शाम के 4:30 बजे का समय था। जज साहब बैठ कर चाय पी रहे थे बाबूजी ने अंगुली से लॉन की तरफ इशारा किया , मुझे देखते ही वह हर्ष से चिल्लाए अरे आओ यार तुम भी ठीक समय पर आ गए , आज से भूत जी ने अल्टीमेटम दे दिया है कि देखो हम क्या करते हैं


बाबूजी ने चिंता जताते हुए कहा आपको इस मुद्दे को इतने हल्के ढंग से नहीं लेना चाहिए भाभी जी आप इन्हे समझा नहीं रही है क्या ?

अरे हमारी एक कब सुनते हैं जब तक कुछ नुकसान नहीं उठा लेंगे यह कहां समझने वाले हैं। उनके कथन में आशंका का पूर्वाभास था।

हल्का अंधेरा और कुछ उमस ही वातावरण में तैरने लगी थी , तभी जज साहब ने कहा चलो अंदर हॉल में बैठते हैं वहीं बैठ कर बात करेंगे।

चलते चलते मैंने पूछा बच्चियां नहीं दिखाई दे रही ? उन्होंने कहा अंदर ही है पढ़ रही हैं चलिए मिलवाता हूँ। नहीं ! उन्हें पढ़ने दीजिये।Horror Stories In Hindi

जज साहब ने बैठते हुए कहा एक शहर से दूसरे शहर आने में सब कुछ डिस्टर्ब हो जाता खासकर बच्चों की पढ़ाई।
बाबूजी कह रहे थे कि मेरी और जज साहब के बीच बातचीत चल रही थी कि अचानक लाइट उड़ गई और बाहर तेज हवा चलने लगी और धूल भरी हवा भी थी।

बाबू जी बता रहे थे यह जाला लगा दरवाजा देख रहे हो या नहीं इसकी चटखनी भी नहीं दिख रही थी। अंधेरे में इत्तेफाक से उस दिन पॉकेट टॉर्च थी जिसकी मदद से मैंने चटखनी लगाई और पर्दा खींचकर लगा दिया।


इस बीच नौकर मोमबत्ती जलाकर टेबल पर रख दिया। थोड़ी देर बाद क्या देखते हैं कि एक खुशबू का झोंका कमरे में आता है। आज तक वैसी खुशबू मैंने पहले कभी नहीं महसूस की थी। बंद दरवाजा खुल जाता है पर्दा अपने आप खिसक जाता है मोमबत्ती बुझ जाती है और बगल के कमरे में पढ़ती बच्ची की एक चीख सुनाई देती है,” डैडी वही सपने वाला आदमी मेरी गर्दन दबा रहा है ” ” बचा लो मुझे ”

उसकी चीख सुनकर जज साहब कमरे के भीतर की तरफ भागते हैं और टेबल से टकरा जाते हैं। मैं टॉर्च दिखाकर उन्हें रास्ता बताता हूं बैठक से कमरे तक पहुंचने में पांच मिनट तो लग ही गए। चीख बंद हो चुकी थी और अचानक लाइट भी उसी समय आ गई जैसे कोई दबे पैरों से बाहर निकल गया है।
चीख सुनकर परिवार के सभी सदस्य कमरे में आ गए। जज साहब की बड़ी बेटी पलंग पर पड़ी हुई थी। थोड़ी ही देर में डॉक्टर भी बुला लिया गया, डॉक्टर ने उनकी बेटी को चेक करते हुए कहा “शी इज नो मोर ”

जज साहब की पत्नी यह सुनकर दहाड़ मार कर रोने लगी और बेटी के सर पर अपना माथा रखकर रोने लगी। सारे घर में चित्कार मच चुकी थी और मैं इस घटना का चश्मदीद गवाह था।

इस घटना ने पूरे शहर को डरा दिया। मगर यह बात यहीं नहीं रुकी फिर वही लाइट का जाना, दरवाजे का अपने आप खुलना, सब कुछ उनके साथ घटित हो हो रहा था। उन्होंने कई सारी व्यवस्थाएं की खोजी कुत्ते लाए एवं पुलिस को सूचना भी दी, लाइट का भी व्यवस्था घर पर अलग किया। लेकिन इसी बीच उनकी दूसरी बेटी की भी मौत हो गई। जज साहब के सामने पड़ी थी उनकी दूसरी बेटी की लाश।
यह सिलसिला यहीं नहीं रुका वह जज साहब से उनकी पत्नी भी छीन लिया अब जज साहब को मन ही मन यह लगने लगा था कि भूत जरूर होता होगा तभी तो सारे इंतजाम करने के बावजूद भी मैं अपने परिवार को नहीं बचा सका।


वो अपनी ज़िद पे पछता रहे थे पर अब उनसे बहुत कुछ छीन चूका था। यह कहकर बाबूजी थोड़ा रुक गए तो मैंने पूछा की क्या जज साहब भी ?

नहीं , ऐसा नहीं है। जज साहब ने बाबूजी से कहा की कुछ दिन के लिए बाहर चला जाता हूँ ये ठीक रहेगा। तो बाबूजी ने कहा ठीक है में जीप लेकर आ जाऊंगा। किसी को पता न चले की कहाँ जा रहे हैं और कितने दिने के लिए जा रहे हैं।

बाबूजी ने बताया , कल सुबह वे जीप लेकर जज साहब के पास पहुंचे और पूछा की कहाँ जाना है तो उन्होंने बताया की मुझे इंदौर ले चलो। गाड़ी खुल चुकी थी और रास्ता बिलकुल घने जंगल से होकर गुज़रता था। हम आगे बढ़ रहे थे और काफी गुमसुम थे। हमने वो महसूस किया था जिसपे कोई भरोसा नहीं करता।
तभी , रास्ते में हमने एक आदमी को देखा जो कि सफ़ेद कपडे पहने हुए था , हाथ देकर हमसे रुकने को बोल रहा था। तभी जज साहब ने चीखते हुए बोला ये वही आदमी है , गाड़ी मत रोको ,जितनी तेज़ी से भगा सकते हो भगाओ।
मैं सहम गया मेरे हाँथ काँपने लगे और मैंने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी। लेकिन हमने देखा की हम जितनी भी तेज़ी से जा रहे है वो आदमीं भी हमारे साथ बढ़ रहा है। वो कोई आदमी नहीं था बल्कि एक साया था। हमदोनो काफी घबरा गए थे ,और तभी वह साया हमारी गाड़ी के सामने आ गया और मैंने ब्रेक लगा दी।


लेकिन जैसे ही गाड़ी धीमी गए तो वो साया गायब हो चूका था , मैंने राहत की साँस ली की चलो पीछा छूटा। लेकिन जैसे ही मैंने जज साहब को देखा तो मेरे होश उड़ गए ,जज साहब का चेहरा ऐसा हो गया था मानो किसी नई उन्हें जलाया हो , उन्ही आखें बाहर हो गयी थी। और यह देखकर मेरे जीप पर से मेरा संतुलन खो गया और जीप रोड से नीचे गड्ढे में गिर गयी।

जब मे होश में आया तो अपने आप को एक छोटे से अस्पताल में पाया। जज साहब भी वही थे ,पर अब वो होश में नहीं थे। उनका दिमागी संतुलन बिगड़ गया था।

जज साहब की एक ज़िद ने पुरे परिवार को बर्बाद कर दिया और हवेली ही विनाश का कारण बनी । अब इस की स्मृतियाँ ही शेष हैं जो एक अनबुझ रहस्य की धागो में पिरोयी हुए हैं


बाबूजी ने कहा ,शायद तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल चूका होगा चलो घर चलते हैं काफी देर हो गयी है।

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