टिनी के रोने से किरण की नींद खुल गई। उसने कलाई में बंधी घड़ी में समय देखा, 11:45 बजे थे, फिर टिन्नी को थपथपाते हुए पलंग के साथ वाला बटन दबाया। पर बिजली तो शाम से ही गुल थी। बाहर तूफान और बारिश का जोर था। रह रह कर बिजली जोर से कड़क उठती थी।
इसी शोर से डरकर शायद टिनी जाग गई थी। लगातार उसे थपका रही थी। वह सोचने लगी, अगर टिनी नहीं सोई तो ऐसे में अंधेरे में उठकर उसको दूध की बोतल देनी होगी। दूसरी तरफ सोया दीनू गहरी नींद में था। वह खुद भी तो कैसी गहरी नींद में सोती रही थी, ऐसी भयंकर आंधी तूफान से बेखबर।
उस दिन सुबह किरण उठी भी तो 4:00 बजे थी। सुबह की उड़ान से ही सबको कलकत्ता जाना था। की टिकट प्रतीक्षा सूची पर थी, चौथा पांचवा और छठा नंबर। दीपक को पूरा भरोसा था कि सब की टिकट आरक्षित हो जाएगी पर हवाई अड्डे जाकर ही पता चला कि केवल एक ही सीट आरक्षित हुई है। दीपक का जाना जरूरी था इसलिए वह चला गया। ड्राइवर किरण और बच्चों को वापस घर छोड़ गया था
किरण ने कामवाली को कल शाम है आने से मना कर दिया था। उसने तो सोचा भी ना था कि उसे ऐसे वापस आना पड़ेगा।8:00 बजे तक वे लोग घर वापस पहुंच गए थे। सोचा था कि पड़ोस में जाकर रीता को बोल आएगी कि उसकी कामवाली एक ही दिन आकर काम कर जाए। पर बारिश की वजह से निकलना ही ना हो पाया था। उधर चौकीदार भी दो-तीन दिन से छुट्टी पर था।
लगभग 3 साल पहले मुंबई से उनका तबादला दीघा हुआ था तो किरण को बहुत कोफ्त हुई थी। उसने तो यह नाम भी कभी न सुना था। लेकिन पदोन्नति के साथ हुए तबादले को छोड़ा भी तो नहीं जा सकता था। परंतु दीघा पहुंचकर उसके सारे गिले-शिकवे दूर हो गए थे।
कलकत्ता से 180 किलोमीटर दूर समुद्र तट पर बसे इस छोटे से कस्बानुमा शहर ने किरण का मन मोह लिया था। वैसे यह कहना भी उचित ना होगा क्योंकि शहर तो उसने तब तक देखा ही कहां था। मन तो उसका आ गया था उस छोटे से बंगले पर जो उनको रहने के लिए मिला था। हाल, सोने के लिए चार रूम, आगे पीछे लॉन, बाहर चौकीदार का कमरा, समुद्र से आती ठंडी हवा, छत से गरजते समुद्र का नजारा आदि देख कर तो वह मानो किसी स्वप्न लोक में पहुंच गई थी। पर वह इस बंगले की सच्चाई से बिल्कुल बेखबर थी उसे मालूम भी ना था की आने वाला समय उसके लिए कितना अंधकारमय होने वाला था।
पर किरण समझ रही थी कि मानो उसे आकाश कुसुम हाथ लग गया हो, पर समय उसके साथ कुछ और ही खेल खेलने वाला था। वह अपने बच्चों के साथ जैसे ही बिस्तर पर सोने के लिए आई उसकी छोटी बेटी रोने लगी वह चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी पर किरण ने किसी तरह उसे सुला दिया।।
रात के 1:00 बज रहे थे धीमी धीमी किरण की आँखें भी भारी हो रही थी। और उसे अचानक ही आंख लग गई
पर वह कुछ ही देर सोई थी कि अचानक जोर से बिजली कड़की और टिन्नी फिर डर कर रोने लगी। किरण का रूका हुआ हाथ उसे फिर थपथपा ने लगा। वह भयभीत सी सोचने लगी ऐसी भयानक तूफानी रात और वह बच्चों के साथ बिल्कुल अकेली है, ना जाने कब सुबह होगी?
दीपक जब भी दौरे पर जाता, वह हमेशा कामवाली को रात को रोक लेती थी। फिर चौकीदार भी तो होता था पर उस दिन तो सब गड़बड़ हो गया था। अंधियारी रात हमेशा से ही किरण को बहुत डराती थी।
बारिश ने तो जोर पकड़ लिया था। शाम से ही टीवी पर समुद्री तूफान के बारे में पूर्व सूचना दी जा चुकी थी। इन 3 सालों में ऐसा पहली बार नहीं हुआ था पिछले साल भी ऐसे समुद्री तूफानों के बारे में पूर्व घोषणा हुई थी। घनघोर वर्षा के साथ समुद्र में खूब ज्वार उठा रहा था हवाएं और तेज चल रही थी समुद्र से आती हवा की साए साए की आवाज जैसे ही किरण के कानों में पड़ती, मानो किरण के अंदर एक डर का एक बिजली दौड़ जाती।।।
वह दरवाजे को फिर से देख आई कहीं वे के खुल तो नहीं गए।।। पर दरवाजे पहले की तरह ही बंद थे किरण घर में लगे पर्दे को अच्छी तरह से लगा दिया जो तूफान की वजह से इधर-उधर हो रहा था
कुछ क्षण के लिए तूफान थम सा गया था किरण को लगा शायद अब तूफान ना आए। अपने डर को भूलाकर कर बिस्तर पर सोने के लिए चली जाती है।।। अभी वह कच्ची नींद में ही थी कि उसे लगा कि उसके सिरहाने कोई सोया हुआ है वह एकदम से चौंक कर उठ जाती है।। और कमरे में लाइट जलाने के लिए स्विच अंधेरे में ढूंढने लगती है पर तूफान की वजह से बिजली चली गई थी।।
किरण अंधेरे में किसी तरह बचते बचाते पलंग के नीचे रखी अपनी बैग की ओर जाती है और उसमें से रखा टॉर्च जलाती है ।।। टोर्च की लाइट बेहद कम थी। किरण सोचने लगी अरे मैंने तो कल ही यह टॉर्च खरीदा था इतनी जल्द खराब कैसे हो सकती है पर वह सोचती है चलो कुछ तो है जलाने को किसी तरह रात कट जाए सुबह होते ही हम यहां से निकल लेंगे।।।।
किरण टॉर्च जलाकर चारों ओर देखने लगती है पर उसे कुछ भी नहीं दिखता है अचानक उसके बगल से किसी की जाने की आवाज सुनाई देती है जैसे ही वह पीछे मुड़ती है।। उसे काले लीवाज मैं लिपटी एक भयावह शरीर देखने को मिलती है वह बिल्कुल डर जाती है और जोर से चिल्लाने लगती है उसके चिल्लाने की आवाज सुनकर उसके दोनों बच्चे भी उठ जाते हैं और रोने लगते हैं किरण इतनी ज्यादा घबरा जाती है की उससे अपने बच्चे की रोने की आवाज भी नहीं सुन रही थी पागलों की तरह चिल्लाने लगी वह खिड़की के पास जाकर जोर से बचाओ बचाओ की दहाड़ लगाने लगी।।।
तूफान फिर से आ गया था इस तूफान में उसकी आवाज खुद के मुख से बाहर नहीं निकल रही थी मानो उसकी आवाज उसी रूम में कैद हो गई हो।
चिल्ला चिल्ला कर वह थक रही थी।। उसके हाथ कांप रहे थे पूरा बदन हिल रहा था आंखें लाल पीली हो रही थी।।। और वह अचानक से बेहोश हो गई।।।।।।
जैसे ही उसकी नींद खुलती है वह जोर से चिल्लाने लगती है बचाओ बचाओ तभी उसके सर पर किसी का हाथ रखने की स्पर्श मालूम पड़ती है वह जैसे ही देखती है खुद को हॉस्पिटल में पाती है और उसके सामने उसका पति दीपक उसके साथ था लेकिन किरण को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि वह हॉस्पिटल में है ।
वो भी जीवित।।। दीपक किरण को समझाने लगता है तुम बिल्कुल ठीक हो हम तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है तुम मेरे साथ हो।।। यह सुनकर किरण की आंखों में उम्मीद की किरण वापस लौट आती है। किरण अपने बच्चे के बारे में पूछती है क्या वे दोनों ठीक है ,हां ठीक है, दीपक कहता है।। पर यह बताओ उस रात तुम्हारे साथ क्या हुआ तुम बेहोश कैसे हो गई।। दीपक किरण से पूछता है-
किरण लड़खड़ाती जुबान से अपनी आपबीती दीपक को सुनाने लगती है।।।। दीपक किरण की पूरी कहानी सुनकर उसी दिन अपना सारा बोरिया बिस्तर समेट कर वहां से जाने की सोचने लगता है।।।।। उसी दिन सपरिवार अपने घर चले आते हैं।।।।
और कोलकाता की रहने वाली किरण इस घटना को आज भी भूल नहीं पाई है वह भयानक तूफानी रात उसके जहन में बैठी हुई है।।। एक डर बन कर।।।।। किरण खुद बताती है की यह घटना उसके जीवन की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी वह सपने में भी नहीं सोची थी कि उसे प्रेत से भी कभी सामना होगा
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