अच्छा भाई, कल सुबह मिलेंगे। कहते हुए डॉक्टर नारायण नाइट ड्यूटी पर निकल पड़े। पढ़ने के लिए एक किताब रख ली और भूख लगने पर खाने के लिए डिब्बा भी। चपाती की गर्माहट से प्लास्टिक का टिफिन बॉक्स गर्म लग रहा था। साथ में कोई सब्जी जरूर होगी।
कार में बैठकर खिड़की के शीशे को धीरे से गिराते हुए डॉक्टर नारायण ने बरामदे की ओर देखा। देवि का____ पत्नी का नाम यही था। दूर का एक रिश्तेदार बरामदे में खड़ा था। डॉक्टर ने हाथ हिलाकर उसके लिए शुभ रजनी ,की कामना की। कमरे के पारदर्शी दरवाजे पर होठ लगाए हुए देवी ने भी उसे देखा
बाहर का फाटक पार करते हुए डॉक्टर ने मुड़कर बुलंद आवाज में कहा, भूलना नहीं। गेट अच्छी तरह से बंद कर लेना।
पहाड़ की उस तलहटी पर गाड़ी सरकती हुई बढ़ रही थी। ठंडी सुहावनी रात। व्हिस्की के दो पेग लेकर सोने का मन कर रहा था और डॉक्टर नारायण घर में पेग बनाने की तैयारी में ही था कि नाइट ड्यूटी गले आ पड़ी, किसी सहयोगी डॉक्टर के एवज में। डॉक्टर को नाइट ड्यूटी इतनी नहीं खल रही थी, जितना की मेहमान का आना। मेहमान वहीं, देवी का दूर रिश्तेदार।
मेहमान अकेले नहीं आया था, जिन की बोतल भी साथ में लाया था। सोफे पर बैठते ही सहद और नींबू पानी के साथ दो पैग चढ़ा लिए। हो सकता है, अब देवी के लिए उसने लार्ज पेग तैयार किया होगा।
कार अस्पताल के पोर्टिको में पहुंची। तलहटी का एक छोटा सा अस्पताल। केवल 5 ही बेड हैं। बेड भले एक ही हो, पर रात में ड्यूटी देने के लिए तो एक डॉक्टर को बैठना ही होगा।
सिस्टर अल्फोंसा बरामदे में खड़ी मिली। उसका चेहरा एकदम खिला था। खाली पड़े हॉल में प्रवेश करते हुए डॉक्टर नारायण ने पूछा, सिस्टर क्या हुआ?,
दो ही मरीज बाकी थे। वे भी 7:00 बजे डिस्चार्ज हो गए।
अब कोई भी नहीं है?, ‘अब तो बस, हम दो हैं____ केवल हम दोनों।‘
सिस्टर अल्फोंसा ने स्टॉव का बटन घुमाया। पूछा, डॉक्टर साहब, आप कॉफी लेंगे या चाय?
,मेरे लिए ब्लैक फ्लास्क भरकर। हां।
डॉ नारायण बरामदे में आकर खड़ा हुआ। पहाड़ की चोटी से बर्फीली ठंडी हवा आ रही थी। चांद निकल आया था।कूहरे से छनकर आ रही चांदनी में सारा आसमान गेहूं का खेत – सा लग रहा था।
डॉक्टर ने ड्यूटी वाले कमरे में कदम रखा। कमरे का माहौल ऐसा था कि उसी दम लेट कर सो जाने को मन हुआ।सिस्टर अल्फोंसा ने बढ़िया ढंग से बिस्तर तैयार किया था और रंगीन कंबल को तह करके करीने से सजा कर रखा था। वह जूते खोलकर कंबल के अंदर घुस गया। दरवाजे को धक्का देते हुए सिस्टर अल्फोंसा अंदर आई। फ्लास्क को मेज पर रखने के बाद वहीं खड़ी हो गई।
चलो सिस्टर, तुम जाकर आराम करो। मैं भी आज जी भर कर सोऊंगा
अच्छा डॉक्टर साहब। ठंडी रात में कोई भी यहां नहीं आएगा।
, सिस्टर, नारायण ने कहा, दरवाजा बाहर से बंद कर लेना।
,ऐसा क्यों?
, आज ऐसा ही सही।
नारायण ने किताब खोली। कैनेडी की जीवनी। ताजे ताजे कागज की गंध । डॉक्टर किताब के पन्ने पलट रहा था। छपे हुए अक्षर चमक रहे थे, फिर ओझल हो रहे थे।पन्नो से एक अजीब गंध आ रही थी, जैसे पानी में शराब उड़हेलते हुए आती है।
डॉ नारायण ने खुली हुई किताब सीने पे रख ली। किताब नन्हे बच्चे के समान वहां पड़ी रही।
नाइट ड्यूटी वाले दिनों में यह साला मेहमान आ टपकता है, पर अजीब बात है, एकदम नाइट ड्यूटी लगी, सहयोगी डॉक्टर के एवज में पर…. पर….. साले ने कैसे सूंघ लिया?
डॉक्टर नारायण ने किताब को बंद करके एक किनारे पर रख दिया। और आंखें बंद कर ली। बंद आंखों के सामने एक दृश्य खुला।
घर में देवी और मेहमान साथ साथ लेटे हैं। देवी को वह दो 3 लार्ज पेग पिला चुका है।
देवी की पलके अंधमुंदी हैं, गालों में लालिमा
नारायण ने अलमीरा से नींद की गोलियों का डब्बा निकाला। इतनी नींद की गोलियां की कम से कम एक सौ आदमियों को सुलाने के लिए पर्याप्त। नारायण ने गोलियां मुंह में डालना शुरू किया। वह गोलियां खाता चला गया। फ्लास्क में रखी कॉफी खत्म हो गई। टीन की गोलियां भी। आखरी गोलियां मुंह के लार में भिगोकर खाली थी।
रुई की तरह बिखरी कोहरे पर सतरंगी छटा में नारायण उड़ रहा है। काफी देर तक उड़ते उड़ते जब शरीर बुरी तरह थक गया, नारायण की आत्मा शरीर से बाहर निकल आई। के बंधन से मुक्त आत्मा होले होले सिस्टर अल्फोंसा के बंद कमरे को पार करते हुए आसमान में उड़ने लगी। आसमान में अनगिनत तारों के साथ चांदनी रात में सीटी बजाते हुए वह अपने घर के अंदर प्रवेश कर गई। आत्मा ने वहां पर जो दृश्य देखा, उसने उसे बुरी तरह दुखी बना दिया। बेचारी देवी। दरवाजा बंद करके वह नादान मासूम बच्ची सी सो रही है।। उसके चेहरे पर शांति का राज्य है। सांसो में भीनी भीनी सौंफ की सुगंध। शायद सोने से पहले ,जीरक बेलम, “सौंफ मिला गरम पानी” पिया है।
मेहमान बरामदे के पास बैठक में नशे में धूत सोया पड़ा है। उसे अपने तन बदन की शूध तक नहीं है। हां, चारों ओर जिन की गंध जरूर फैली हुई है।
बेचारी देवी। बरामदे में खुलने वाला दरवाजा अंदर से बंद करके सोई है, बल्कि ताला भी लगा रखा है।
नारायण की आत्मा अपराध बोध से सकुच गई। वह झुककर देवी के गालों पर, उसके माथे पर चुंबन की वर्षा करने लगा।
लेकिन आत्मा के चुंबनओं को कोई कैसे महसूस करें?
नारायण की आत्मा वहां से लौटी, तो अपराध बोध से दबी हुई थी।
सड़क कहां है?
पहाड़ कहां ?
तलहटी किधर है? अस्पताल कहां?
नारायण की आत्मा रास्ता भूलने लगी। फिर भी वह निराश नहीं हुई। होले होले आकाश में उड़ते उड़ते जैसे इस ओर आई थी, उसी तरह बापसी यात्रा पूरी करके अपने कमरे में पहुंच गई। हाय।
नारायण का शरीर ठंडा पड़ चुका है। आत्मा नारायण की नाक के पास खड़ी हुई है। यह क्या? नाक में सांस रुक गई? आत्मा ने नारायण की आंख खोली। पुतली स्थिर है।
नारायण के शरीर में पुनः प्रवेश की उसकी सारी कोशिशें नाकाम हो गई। पूरी तरह से हारने के बाद आत्मा अजीब असमंजस में पड़ गई कि अब उसे किस ओर चलना है स्वर्ग की ओर या नरक की ओर?… तमिलनाडु की रहने वाली कुंतील परिवार किया घटना है।।
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